भारत मे यह पहली बार हुआ की एक विधायक को भारत के एक राज्य मे उसकी ही नही, पूरे राष्ट्र की मातृभाषा मे शपथ लेने से रोका गया और विरोध जताने पर एक पार्टी विशेष के ही विधायकोँ के द्वारा शारीरिक हानि पहुँचाने का प्रयास भी किया गया । विधायक को स्वयँ के धर्म विशेष और भाषा विशेष के कारण वश ही नही, जनता के उस तबके की वजह से, जिसका वो प्रतिनिधित्व करते है, प्रतिरोध झेलना पडा । खेद इस बात का है कि पूरे सदन मे कोई भी व्यक्ति उस विधायक की सहायता अथवा बचाव करने हेतू साहस नही जुटा पाया । कुछ दिनो पहले उत्तर भारतीय और हिन्दी भाषियोँ पर ताबड-तोड हमले हो रहे थे । उनके व्यवसायिक प्रतिष्ठानोँ को निशाना बनाया जा रहा था । विडम्बना इस बात की है कि जिस शहर को आज उत्तर भारतीयोँ ने विश्व पटल पर शोभित करने मे सबसे बडा योगदान रहा, उन्हीँ को आज स्थानीय गुण्डा तत्व का शोषण झेलना पड रहा है।
मज़े की बात यह है कि मनसे के कार्यकर्ता केवल सीदे सादे उत्तर भारतीय और कुछ विशेष अभिनेताओँ पर प्रश्नचिन्ह खडे कर तो देते हैँ, परंतु इस क्षेत्र के माफिया और underworld से अभी भी उनकी “tear” ती है ।
अंबेडकर , सावरकर और नाथूराम गोडसे की भूमि से मुझे अनेक अपेक्षाएँ थीँ । पर वो सब अपेक्षाएँ 11 पाकिस्तानी छिछोरोँ ने ध्वस्त कर दी । सोचने योग्य बात यह है कि इन 11 मुस्टण्डो ने इन मराठी वीरोँ को घर मे घुसने पर विवश कर दिया । मराठी पुलिस अधिकारी इनके हाथोँ शहीद हुए और बिना एक भी उग्रवादी को मारे खाँमखाँ अशोक चक्र ले गये । करीब 300 जानेँ गयी और शिवाजी के मराठे घर मे पडे रहे ।
खैर, जैसे होता आया है, NSG और MARCOS की 5 और 2 teams ने इन लडकोँ को खुदा के पास पहुँचा ही दिया । और मज़े की बात यह के NSG का नेतृत्व एक उत्तर भारतीय अफसर, जिनमे जाट, राजपूत, गोरखा और यादव जवान थे, पर एक भी मराठी नहीँ था । MARCOS मे भी करीब करीब यही स्थिति थी , बस फर्क इतना था कि अफसर दक्षिण भारतीय था । समूची महाराष्ट्र पुलिस सेवा विफल साबित हुई, केवल एक हवलदार को छोड जिसने कसाब को पकडा था ।
मुझे नही पता कि बाला साहब या राज ठाकरे मे इतना साहस है कि वे किसी आतन्कवादी के समक्ष खडे हो सकेँ । शिव सेना मे अगर इतना शिवभक्ती है, तो क्या वे चीन से कैलाश पर्वत छीन सकते हैँ ?
मै इन व्यक्तियोँ को दोष नहीँ दे सकता । दोष तो उस समूचे मराठी समाज का है जो इन्हेँ अपना प्रतिनिधि बनाकर सदनो मे भेजता है । अगर समस्त महाराष्ट्र की यही मानसिकता है तो उनसे तो अच्छे उत्तर पूर्वी राज्य और कश्मीर ही है, जहाँ राष्ट्र्भाषा के नाम पर राजनीति नही होती ।
हे मराठी मानुष, ईश्वर तुम्हे सदबुध्दि दे ।
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Maharashtra, a state in India has discriminated against someone who wanted to take an oath in Hindi, but was manhandled since he didnt budge from his stand.
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